कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से ‘सुदामा चरित’ की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
इस दोहे के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब तक एक व्यक्ति के पास धन होता है तब तक ही लोग उसके अपने होते हैं। ऐसा इंसान कभी किसी का मित्र नहीं हो सकता। मुश्किल की घड़ियों में आपका साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है क्योंकि उसके व्यक्तित्व में स्वार्थ का भाव नहीं छिपा होता। यद इस दोहे की तुलना हम ‘सुदामा चरित’ से करें तो इसमें काफी समानता देखने को मिलती है। ‘सुदामा चरित’ में भी श्रीकृष्ण अपने प्रिय मित्रों को देखकर खुश हो जाते थे। कृष्ण उनके सम्मान में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ते। उनका व्यवहार देख मित्रों को यह महसूस हीं नहीं होता कि वे द्वारकाधीश के सामने बैठे हैं। इसमें श्रीकृष्ण ने अपने गरीब दोस्त सुदामा के प्रति ऐसा व्यवहार दिखाया कि लोग सदियों से उनके आचरण और दोस्ती की मिसाले देते रहे हैं।